बजट 2021 : सरकारी बैंकों में जान फूंकने का प्रयास - Ved Mathur

Breaking

Sunday, February 7, 2021

बजट 2021 : सरकारी बैंकों में जान फूंकने का प्रयास

 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत वित्तीय वर्ष 2021- 22 के बजट में कैपिटल की कमी और बढ़ते एनपीए की चुनौतियों से जूझते सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 20 हजार करोड़ रु की पूंजी और 'असेट मैनेजमेंट कंपनी' तथा 'असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी' के माध्यम से एनपीए कम करके ऑक्सीजन देने का प्रयास किया गया है। 'असेट रिकन्स्ट्रक्शन कंपनी' और 'एसेट मैनेजमेंट कंपनी' को आम भाषा 'बैड बैंक' कहा जाता है।  यह 'बैड बैंक' या कंपनी बैंकों की दबाव वाली परिसंपत्तियों अथवा फंसे हुए कर्ज को अपने हाथों में ले लेगी। इससे बैंकों को अपने बही खाते सही करने और फंसे कर्ज के लिए अलग से प्रावधान करने से राहत मिलेगी।कम प्रावधान करने से स्वाभाविक है कि बैंकों का लाभ बढ़ेगा।

  'बैड बैंक' बैंकिंग सेक्टर के फंसे कर्ज ( एनपीए ) को लेकर इन्हें पुनगर्ठित करेगा और निवेशकों को सौंपकर निपटारा करेगा। इससे बैंकों के ऊपर से एनपीए खातों में वसूली का दबाव हट जाएगा और वे कोरोना महामारी के बाद के दौर की बाजार की बढ़ी हुई पूंजी की मांग पूरी कर सकेंगे। इससे एक ओर तो अर्थव्यवस्था की गति तेज होगी तथा दूसरी ओर ऋण पोर्टफोलियो बढ़ने से बैंकिंग सेक्टर की सेहत में सुधार होगा।

भारतीय बैंकिंग का 70% एनपीए सरकारी बैंकों में है । सितंबर 21 तक बैंकों का एनपीए बढ़कर विस्फोटक स्तर 13.5% होने की आशंका है।

   एनपीए 'बैड बैंक' में स्थानांतरित होने से एनपीए में भारी कमी के  कारण सरकारी बैंकों की बैलेंसशीट सुदृढ़ हो जाने से उनकी रेटिंग सुधरेगी तथा वे अपनी पूरी ताकत नए ऋणों के वितरण के माध्यम से अर्थव्यवस्था में तेजी लाने में सक्रिय भूमिका निभा सकेंगे।  बैंकों की बदली हुई बैलेंसशीट  निवेशकों को भी आकर्षित करेगी।

 मोदी सरकार ने  वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से अब तक लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए सरकारी बैंकों को पूंजी निवेश ( रेकैपेटिलाईजेशन ) के रूप में दिए हैं लेकिन बढ़ते एनपीए के कारण सरकारी बैंकों की पूंजी की आवश्यकता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में लगी अपनी पूंजी पर उचित लाभ मिलना तो दूर उनके 'पूंजी पर्याप्तता' के मापदंड पूरे करने के लिए उन्हें बड़ी मात्रा में अतिरिक्त पूंजी देनी पड़ रही है।ऐसे में 'बैड बैंक' सरकारी बैंकों के लिए संजीवनी सिद्ध होगा तथा वे पूंजी के लिए बार-बार भारत सरकार का मुंह नहीं ताकेंगे। एनपीए घटने से बैंक पूंजी पर्याप्तता के मापदंडों के अनुरूप मौजूदा पूंजी में ही अधिक ऋण दे सकेंगे। लेकिन इसमें यह सावधानी बरतनी होगी कि अपने खराब ऋणों से छुटकारा पाने के बाद बैंक अपने जोखिम प्रबंधन की खामियों को दूर करने के बजाय त्रुटि पूर्ण ऋण विस्तार जारी ना रखें तथा नए एनपीए उत्पन्न नहीं करें ।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में 'डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन' की स्थापना की घोषणा भी की है। इसके लिए वित्तमंत्री ने बजट में 20 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया है। इस नए संस्थान का लक्ष्य अगले तीन सालों में 5 लाख करोड़ रुपये का महत्वाकांक्षी पोर्टफोलियो बनाने का होगा। दरअसल सरकार  'इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट परियोजनाओं' के लिए राष्ट्रीय बैंक की स्थापना करेगी, जो इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी देश की वित्तीय जरूरतों को पूरा करेगी। 

आईडीबीआई, आईसीआईसीआई और आईएफसीआई के बैंक में परिवर्तित हो जाने से आधारभूत ढांचे के लिए बड़ी मात्रा में ऋण की आवश्यकता पूर्ति के लिए कोई संस्था नहीं है। बैंकों की जमा राशियां सामान्यतः लघु अवधि की होती हैं इसलिए उन्हें दीर्घ अवधि के बड़े ऋण  देने पर 'असेट लायबिलिटी मिसमैच' की समस्या का सामना करना पड़ता है। 'डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन' आरंभ करने का यह कदम इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र  के विकास तथा रोजगार सृजन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम सिद्ध होगा।

इस बजट में एक महत्वपूर्ण घोषणा दो सरकारी बैंकों के डिस्इनवेस्टमेंट की है, जिसके बाद ये बैंक निजी हाथों में चले जाएंगे। पिछले कुछ समय से सरकारी बैंकों की स्थिति निरंतर खराब हो रही है लेकिन सरकार इन बैंकों के रोग के सही 'डायग्नोसिस' और उपचार के बजाय इनके परस्पर विलय और प्राइवेटाइजेशन को  ही उपचार समझ रही है।  सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गवर्नेंस को सुधारने तथा इन्हें सही अर्थों में स्वायत्तता देने की दिशा में प्रभावी उपाय नहीं हो रहे हैं। सरकारी बैंकों की सबसे बड़ी समस्या इरादतन चूककर्ता ( विलफुल डिफॉल्टर्स ) की है जिन्हें फॉरेंसिक ऑडिट में दोषी पाए जाने के बाद कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए किंतु ऐसी  कार्य योजना नजर नहीं आती।

 प्राइवेटाइजेशन की घोषणा पहले से असंतुष्ट सरकारी बैंकों के कर्मचारियों को और असंतुष्ट करेगी इसलिए बेहतर हो कि सरकार उन्हें तथा अन्य 'स्टेक होल्डर्स' को विश्वास में ले। बैंकों का प्राइवेटाइजेशन एक संवेदनशील मुद्दा है जिससे आम आदमी और किसानों को भी नुकसान हो सकता है इसलिए बैंकों को प्राइवेटाइज करने से पहले इस पर गहन मंथन की जरूरत है।

इस बजट में वित्त मंत्री से 'विलफुल डिफॉल्टर्स' से वसूली के लिए ऋण वसूली प्राधिकरण की मौजूदा सुस्त न्यायिक व्यवस्था में सुधार तथा अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत को देखते हुए रियल एस्टेट और आवास ऋण के प्रति और अधिक उदार नीति की अपेक्षा थी।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत यह आशावादी बजट बैंकिंग क्षेत्र को निसंदेह नई दिशा और अर्थव्यवस्था को गति देगा बशर्ते बैंकों में स्वायत्तता, पारदर्शिता, जवाबदेही, कार्यसंस्कृति और जोखिम प्रबंधन  को बदलते हुए समय व बाजार की आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तित किया जाए।

* वेद माथुर

( लेखक पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व महाप्रबंधक हैं तथा साथ ही वे चर्चित पुस्तक 'बैंक ऑफ पोलमपुर' के लेखक हैं।)

Recommended Posts