सरकारी कर्मचारी हुक्मरान नहीं, नौकर हैं ! - Ved Mathur

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Monday, June 29, 2020

सरकारी कर्मचारी हुक्मरान नहीं, नौकर हैं !

कोविड महामारी के बाद सरकार की स्वास्थ्य, शिक्षा,पब्लिक ट्रांसपोर्ट सहित सभी नीतियों पर नए सिरे से विचार की जरूरत है।
इन नीतियों में बदलाव के साथ साथ सरकारी कर्मचारियों की सोच में बदलाव कर उन्हें संवेदनशील व तत्पर बनाने की भी जरूरत है ।
कई बार हम सबके मन में सवाल आता है कि हम सरकार को जो टैक्स दे रहे हैं क्या बदले में सरकार भी हमें समुचित सेवाएं प्रदान कर रही है ? क्या टैक्सपेयर की आमदनी  से पलने वाले सरकारी कर्मचारी अपने एंपलॉयर आम आदमी को वाकई अपना बॉस समझते हैं ?

ये सवाल एकदम न्यायोचित हैं तथा इन्हें मैं और भी बड़े परिप्रेक्ष्य में उठाना चाहता हूं। क्या आपने कभी किसी ऐसे रेस्टोरेंट के बारे में सुना है  जहां आपको पूरे रुपए देने के बावजूद खाने के लिए वेटर को घूस देनी पड़ती हो, वेटर गायब हो जाता हो, आने पर मनमानी करता हो, रेस्टोरेंट का मैनेजर और जनरल मैनेजर मजे मारते हुए इधर-उधर घूम रहे हों, खाना आपकी मर्जी से नहीं रेस्टोरेंट के मालिक की मर्जी से परोसा जाता हो, कभी आपसे बिल लेकर भी खाना नहीं दिया जाता हो ।हमारी सरकारें और उनका तंत्र इसी काल्पनिक रेस्टोरेंट की तरह आचरण करता  है- सरकारें आपकी गाढ़ी कमाई से पूरा पैसा वसूलती हैं , लेकिन सेवा नहीं देती। इस रेस्टोरेंट ( सरकार) के वेटर ( चपरासी से लेकर आईएएस और पार्षद से मंत्री तक ) अपनी औकात भूल गए हैं।
आज जब हमारी सरकारें ( केंद्र सरकार और राज्य सरकार) पूरी तरह से कामर्शियल हो चुकी हैं तो जनता को चाहिए कि वह संगठित होकर कुछ सवाल उठाए!
 पहला- क्या इतना टैक्स भरने के बावजूद हमारे सरकारी अस्पताल इस लायक हैं कि आप और हम वहां जाकर अपना इलाज करा सकें ? विदेशों में सरकार टैक्स लेती है तो आम आदमी  की चिकित्सा का समुचित प्रबंध भी करती है।
 दूसरा -क्या हमारी सरकारी स्कूलें इस लायक हैं कि आप और हम अपने बच्चों को वहां पढ़ा सकें ? यदि सरकारी  स्कूल अच्छी हैं तो हमारे कलेक्टर साहब, दूसरे अफसरान, बड़े सरकारी गैर सरकारी डॉक्टर, इंजीनियर ,व्यापारी आदि अपने बच्चों को वहां पढ़ने क्यों नहीं भेजते?
 तीसरा- यदि सरकार कदम कदम पर हमसे टैक्स ले रही है तो राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल टैक्स क्यों है?
चार - मेरे विचार से हिंदुस्तान के व्यापारी जितना टैक्स बनना चाहिए उसका 10% भी नहीं चुकाते। इन लोगों से टैक्स वसूली के लिए सरकार की क्या योजना है ? यदि सरकार इनसे पूरा टैक्स नहीं वसूल पाती है तो स्वाभाविक है कि वह अपने खर्चे चलाने के लिए वेतनभोगी कर्मचारियों और अन्य ईमानदार करदाताओं से ज्यादा दर से टैक्स वसूल कर अपना खजाना भर रही है?
पांच - क्या सरकार आयकर और दूसरे टैक्स  वसूलने वाले तंत्र से भ्रष्टाचार कम करने के लिए गंभीर है? क्या इस तंत्र की मिलीभगत के बिना टैक्स चोरी संभव है?
छः - विदेशों में टैक्स के बदले सरकार वृद्धावस्था में सोशल सिक्योरिटी देती है ।हमारे देश में वृद्ध लोगों को किसी तरह की कोई सोशल सिक्योरिटी नहीं है। हमारे यहां जो लोग गैर सरकारी संस्थानों में काम करते हैं या असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद और यहां तक कि सेवा के दौरान सरकार की ओर से कोई विशेष सपोर्ट नहीं मिलता है ।
सात - क्या हमारी पुलिस और न्याय व्यवस्था आम आदमी के लिए सुलभ है ? जो सुप्रीम कोर्ट चिदंबरम जैसे अरबपति के मामले आधी रात को सुनने को तैयार है वहां आम आदमी घुस भी सकता है?  यदि  आपके घर में चोरी हो जाती है या आपके परिवार की किसी बच्ची को गुंडे छेड़ते हैं तो क्या आप  निसंकोच निडर होकर पुलिस थाने में जा सकते हैं  ? क्या आप को उम्मीद है कि वहां आपके साथ अच्छा व्यवहार होगा ?  क्या आप यह आशा कर सकते हैं कि आपको  किसी कोर्ट से दस बीस साल पहले राहत मिल सकती है ?
हमारा समूचा सरकारी तंत्र आम आदमी को अपना गुलाम समझता है। वह जायज काम करने की भी घूस मांगता है ।जैसे कि यदि आपको अपने मकान की रजिस्ट्री करानी हो या अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो तो आपको घूस देनी पड़ेगी। यह सरकारी तंत्र आपके हमारे पैसों से पल रहा है लेकिन जब आप इस तंत्र के पास जाते हैं तो यह आपके प्रति उदासीन रहता है, कभी-कभी बदतमीजी करता है, आपको प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से परेशान करता है और पूरा काम होते होते आपको थका देता है। चाहे आप 65 या 75 साल के पेंशनर क्यों ना हों?
अब वह समय आ गया है जब सरकार भरपूर टैक्स वसूल रही है तो अपने तंत्र को भी सुधारे, चाहे यह तंत्र केंद्र सरकार का हो या राज्य सरकार का ।पिछले कुछ सालों में  थोक में होने वाले भ्रष्टाचार में जरूर कमी आई है लेकिन अभी भी निचले स्तर पर हो रहा भ्रष्टाचार पूरा फल फूल रहा है ।सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और व्यापारियों की टैक्स चोरी  रोकने के लिए सरकार गंभीर नहीं है। इसका कारण यह है कि यह दोनों अपने आप में बहुत बड़े वोट बैंक हैं।
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यहां मैं विनम्रता पूर्वक एक बात कहना चाहूंगा कि मैं पंजाब नेशनल बैंक की विभिन्न शाखाओं में रहा ।अजमेर के ज्यादातर लोग  जानते भी हैं कि जब मैं सेवा में था तो मेरा व्यवहार और आचरण कैसा था ?   बैंक मे मैंने हरदम अपने केबिन के बाहर एक प्लेट लगाई है जिस पर लिखा होता था , "आप अंदर आ सकते हैं आपका स्वागत है।"
साथ ही मेरी टेबल पर एक प्लेट होती थी, "कृपया बैठिए !"
 आज जरूरत इस बात की है कि सरकारी कर्मचारियों को यह समझाया जाए (प्यार से और प्रताड़ना से) कि आप अफसर या हुक्मरान नहीं है आप आम आदमी के नौकर हैं।
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सरकारी कार्यालयों के साथ आप अपना कोई खट्टा मीठा अनुभव नीचे कमेंटस बॉक्स में शेयर कर सकते हैं !
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आजकल पूरा हिंदुस्तान चीयर लीडर्स में बदल गया है । भ्रष्ट टीमें मैच खेल रही हैं और हम सारे लोग किसी एक टीम के पक्ष में  बिना सोचे समझे नाच रहे हैं अर्ध नग्न  चीयर लीडर्स की तरह !
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